कारवाँ बदल रहे, बदल रहे है कारवें ....
जाने फ़िर तेरी फिजा, क्यूँ उड़ रही गुबार में....
खो गए हम यहाँ, इस बड़े संसार में ....
जाने फ़िर तेरे निशाँ, क्यूँ दिख रहे बाज़ार में.......
लब मेरे हँस पड़े, इस लम्हे-रुसवाई में....
शायद जो तेरी याद आयी, इस गम-ऐ-तन्हाई में....
कारवाँ बदल रहे, बदल रहे है कारवें ....
जाने फ़िर तेरी फिजा, क्यूँ उड़ रही गुबार में....
ख्वाहिशें ऐसी हैं, जो न मिल सके अज़ल में....
जाने फ़िर क्यूँ जी रहे हम , एक ही उम्मीद में......
शायद तू मुझे फ़िर मिले, किसी और ही संसार में....
आज भी बैठा हूँ मैं, उस वक्त के इंतज़ार में.....
कारवाँ बदल रहे, बदल रहे है कारवें ....
जाने फ़िर तेरी फिजा, क्यूँ उड़ रही गुबार में....
VEER
30-08-2008
1 comment:
बहुत सुंदर!
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