Saturday, March 31, 2012

पागल मन

देख रे मन तू मेरे, ऐसे न तू समझा मुझे...
नादान मुझे तू जानकर, ऐसे न तू बहला मुझे .....
देख रे मन तू मेरे...............


तकलीफ देती है मुझे उसके चेहरे की खामोशियाँ,
मासूमियत कहीं खो गयी परेशानियों  के दरमियाँ....


तेरे आंसुओ की पुकार पे, इक पल तो खो सा जाता हूँ...
पर उसकी यादों की फुहार से, तन्द्रा से जग जाता हूँ....
देख रे मन तू मेरे..............

स्वार्थी पतझड़ भी देखो, लूटकर तो जाता है .....
पर नई उमंगो और  तरंगो की, कोपले दे जाता है....


हम तुम तो हर पल साथ है पर उसकी कुछ और बात है..
तू अगर टूटा भी तो मैं तुझको समेट लाऊंगा,
पर उसके टूटने से तो खुद भी बिखरने से न बच पाउँगा...
देख रे मन तू मेरे..............


VEER

Monday, March 19, 2012

बहाव

बड़ी मुद्द्त बाद कलम उठायी है...लिखता हूँ तो तुम्हारी यादें छलकती हैं....


हर एक पत्ता गिर गया पर मौसम क्यूँ नहीं बदला,
तन्हा बदल भी बरस गया पर अम्बर क्यूँ नहीं बदला......

लहर उठी फिर झुकी चाँद को पुकार कर,
घरौंदा सब बह गया पर सागर क्यूँ नहीं बदला.....


घर उजड़े लोग बिसरे खुशियाँ रोयी  सो अलग,
रस्ते भी वीरान हुए पर शहर क्यूँ नहीं बदला.....

नज़र मिली धड़कन थमी होश बेखबर हुए....
पन्ने सब पलट गए पर किस्सा क्यूँ नहीं बदला....

VEER