तेरी आयत लिए भटकता फिरता रहा हूँ मैं....
कभी आती कभी जाती साँसों से इबादत करता रहा हूँ मैं...
उसी से दूर रहा हूँ जो चाहत थी कभी...
बस मेरे रहनुमा हर पल मरता रहा हूँ मैं.....
ख़ुशी चीज़ क्या है ये मैंने जाना नहीं था...
पर उसकी दी आँखों से अश्क पोछता रहा हूँ मैं....
बाद मुद्दत जो कभी तुमसे मुलाक़ात हुयी तो....
दो लफ्ज़ कह न सका बस देखता रहा हूँ मैं.....
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कभी आती कभी जाती साँसों से इबादत करता रहा हूँ मैं...
उसी से दूर रहा हूँ जो चाहत थी कभी...
बस मेरे रहनुमा हर पल मरता रहा हूँ मैं.....
ख़ुशी चीज़ क्या है ये मैंने जाना नहीं था...
पर उसकी दी आँखों से अश्क पोछता रहा हूँ मैं....
बाद मुद्दत जो कभी तुमसे मुलाक़ात हुयी तो....
दो लफ्ज़ कह न सका बस देखता रहा हूँ मैं.....
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