Saturday, December 18, 2010

Wajood

आज सुबह जब आइना देखा, चेहरा कुछ खामोश था.....
जाने क्या वो सोच रहा था , जाने क्यूँ मदहोश था......

लबो पे इक मुस्कान सी छाई, जैसे तू मेरे जेहन में आई....
काँप गया तन मन मेरा, जैसे तू मुझसे मिलने आई..

तड़प उठा छूने को दिल, तुझको क्यूँ सरगोशी से.....
देख नहीं पाया मैं तुझको, चुपके से ख़ामोशी से....

हाथ बढ़ाये थे मैंने जब , आइना भी मुझसे बोल उठा....
तू तो पगला है दीवाने, क्या मुझको भी पागल समझ चला......

तू प्यार किसी को करता है, क्यूँ मुझको देख हँसता है..
क्यूँ तू अपने अक्स में, उसको ढूढ़ा करता है....

तुझे चहकता देख कर, मैं भी हँस पड़ता हूँ ....
झूठी तसवीर उसकी , मैं तुझको दिखलाया करता हूँ.....

अब कैसे समझाउं मैं उसको (आईने को), मैं तो तुझ में ही खोया हूँ....
अब तो मेरा वजूद ही क्या है, तू ही तो मेरा सरमाया है....




VEER


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