Sunday, December 19, 2010

Paagal Budhiya

वहां उस पिछवाड़े में एक अँधेरा कमरा हुआ करता था...उसमें एक बुढ़िया रहा करती थी ..
सारे नज़ारे देखा करती थी...पर कभी किसी से कुछ ना कहती थी..
कभी कभी मैं उसे खुद से बातें करते सुनता था..
शायद सबको पागल कहती थी...
कहती थी अपने बगीचे के फूलो से सबको प्यार होता है..
फिर दुसरे फूलो से क्या दुःख मिलता है....
सब उसको पागल बुढ़िया कहते थे....
वहां उस पिछवाड़े में एक अँधेरा कमरा हुआ करता था...उसमें एक बुढ़िया रहा करती थी ..

मेरा मन उस अँधेरे कमरे में जाने को बहुत करता था..
पर अम्मा मना करती थी, शायद बुढ़िया से डरती थी..
मैं बुढ़िया से कहता था ....काकी अँधेरा क्यूँ है...
काकी कहती बेटा जिंदगी की धूपमें बहुत अँधेरा है...यही याद रखने के लिए है...
मैं छोटा था ...मुझे कुछ समझ ना आता था ....मुझे भी लगा...बुढ़िया पागल है..
वहां उस पिछवाड़े में एक अँधेरा कमरा हुआ करता था...उसमें एक बुढ़िया रहा करती थी ..

आज मैं बड़ा हो गया हूँ, चार बातें सीख गया हूँ...
दुनिया के रंग में रंगा हूँ, कहता हूँ जिंदगी जी भर के जी रहा हूँ...
अब तो उस बुढ़िया की याद भी नहीं आती है, शयद वो पागल थी....
वहां उस पिछवाड़े में एक अँधेरा कमरा हुआ करता था...उसमें एक बुढ़िया रहा करती थी ..

आज चुप चाप कमरे में अँधेरा करके लेटा हूँ, आज बुढ़िया की याद आ गयी है..
अँधेरे का मतलब भी समझ गया हूँ....पर शायद देर हो गयी है...
वहां उस पिछवाड़े में अंधेरा कमरा तो आज भी है....पर वो बुढ़िया अब नहीं है...
जिसे सब पागल कहते थे.....

वहां उस पिछवाड़े में एक अँधेरा कमरा हुआ करता था...उसमें एक बुढ़िया रहा करती थी ..
सारे नज़ारे देखा करती थी...पर कभी किसी से कुछ ना कहती थी..


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