बड़ी मुद्द्त बाद कलम उठायी है...लिखता हूँ तो तुम्हारी यादें छलकती हैं....
हर एक पत्ता गिर गया पर मौसम क्यूँ नहीं बदला,
तन्हा बदल भी बरस गया पर अम्बर क्यूँ नहीं बदला......
लहर उठी फिर झुकी चाँद को पुकार कर,
घरौंदा सब बह गया पर सागर क्यूँ नहीं बदला.....
घर उजड़े लोग बिसरे खुशियाँ रोयी सो अलग,
रस्ते भी वीरान हुए पर शहर क्यूँ नहीं बदला.....
नज़र मिली धड़कन थमी होश बेखबर हुए....
पन्ने सब पलट गए पर किस्सा क्यूँ नहीं बदला....
VEER
हर एक पत्ता गिर गया पर मौसम क्यूँ नहीं बदला,
तन्हा बदल भी बरस गया पर अम्बर क्यूँ नहीं बदला......
लहर उठी फिर झुकी चाँद को पुकार कर,
घरौंदा सब बह गया पर सागर क्यूँ नहीं बदला.....
घर उजड़े लोग बिसरे खुशियाँ रोयी सो अलग,
रस्ते भी वीरान हुए पर शहर क्यूँ नहीं बदला.....
नज़र मिली धड़कन थमी होश बेखबर हुए....
पन्ने सब पलट गए पर किस्सा क्यूँ नहीं बदला....
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3 comments:
understood evrything except 'gharonda'....4th line first word.....uska meaning kya he?
sahi hai dost
Nice...!!
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