इसे गाने के लिए खुद ही सूफियाना धुन भरने के कोशिश करे
नींद कहाँ सब्र कहाँ.....अये रब्बा ....कोई तो बताये मुझको कोई तो बताये...
नींद न आये..रात भागी जाये.. नींद न आये..रात भागी जाये..
ये यादें क्यूँ मुझको ऐसे सताये...अये रब्बा ....कोई तो बताये मुझको कोई तो बताये...
इन अंखियों की भाषा हम न जाने...कैसे न फिर हम दुनिया की माने....
लज्जा फिर ऐसे ही छलकती जाये.....
अये रब्बा ....कोई तो बताये कोई तो बताये...
ढूंढ रहा मैं मन की बगिया ....खे कर अपने प्रेम की नैय्या ....
न जानू मैं मृग की तृष्णा , रेत है ये या है ये जल की वीणा ...
लबों को अब भी प्यास जलाये...
अये रब्बा ....कोई तो बताये मुझको कोई तो बताये...
करवट बदले मन ये सोचे...सो भी रहा हूँ या ये भी हैं धोखे....
तारों को गिन कर रात कटी है...अब कुछ भी न क्यूँ मन को भाये...
अये रब्बा ....कोई तो बताये कोई तो बताये...
जाग गए हैं अंखिया ये बोले....सोये ही कब थे मन ही जाने....
मन की ये ऐसी व्यथा अब किसको बताये....
अये रब्बा किसको बताये हम किसको बताये...
.अये रब्बा ....कोई तो बताये मुझको कोई तो बताये...
VEER
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