Sunday, July 24, 2011

धुंधली यादों में...

जिंदगी यूँ तन्हा गुजरेगी, 
तुम्हारी यादो के गलियारों  में भटकते हुए,
उन तमाम तस्वीरों में कुछ ढूँढते हुए, जो शायद  धुंधली पड़ गयी थी.....
कभी सोचा न था ............

यूँ तो तुम्हारी सहेजी हुयी हर चीज़ में इक खामोश रागिनी को सुनता हूँ,
मगर सब कहते हैं कि अब मुझे सुनाई नहीं पड़ता है, शायद अब मुझे सन्नाटो की आदत सी पड़ गयी है...
अभी कल ही वो पुराने रिकॉर्ड निकाले थे, जो तुमने तोहफे में दिए थे.....
बहुत कोशिश की पर, शायद तुम्हारी तरह वो भी खामोश हो गए थे .............
जिंदगी यूँ तन्हा गुजरेगी, कभी सोचा न था ............

उस मकाँ में भी अब मुझे अच्छा नहीं लगता है,
जहाँ कभी तिनका तिनका जोड़ कर तुमने एक घोसला बनाया था, वो अब बिखर सा गया है...
वहां पिछवाड़े में लगे गुलाब भी अब महकते नहीं है,
शायद मेरी तरह उनको भी तुम्हारी आदत सी हो गयी थी......
जिंदगी यूँ तन्हा गुजरेगी, कभी सोचा न था....

अक्सर ही मेरे कदम उस तिकोने पार्क की तरफ चल पड़ते हैं,
मगर अब वहाँ गाड़ियों का शोर बहुत होता है, 
वक़्त की कमी मुझे अब भी रहती है, तुम्हारी यादो की उधडती सीवन की मरम्मत से ही फुर्सत नहीं मिलती है..
मगर अब कोई शिकायत नहीं करता है.....
जिंदगी यूँ तन्हा गुजरेगी, कभी सोचा न था....



VEER

3 comments:

Unknown said...

bhai zabardast h yr.......

pronab said...

aapki dhundhli yado m kho kr achha laga....

LIfe a poetry....I am a poem said...

thanks yaar.............