इक शाम के झोके ने धक्का मार के गिरा दिया,
ये शाम वही थी जिसको गढ़ा था तपती दोपहर में.....
टूट कर बिखरे हर हिस्से को जुटा लिया कतरा कतरा,
हर कोशिश नाकाम हुयी जुड़ न पाया कतरा कतरा.......अंधियारी जब रात हुयी मुझे ओस की बूँदें गढ़ने लगी,
जोड़ गांठ के जब उकरा मैं बदल गया कतरा कतरा ......
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