Sunday, October 7, 2007

my first poem "Teri Yaad"


आज भी मेरा मन जाने क्यों जीने को नही करता है ,

फिर भी तेरी बातें सोचकर ये चेहरा हँसा करता है,

आज भी ये दिल जाने क्यों सपनो में खोया रहता है,

छुप छुप के किसी कोने में ये आज भी रोया करता है,

मेरा ही अक्स जाने क्यों अक्सर मुझसे ये सवाल करता है,

आज भी क्यों वो मुझमें तेरा ही चेहरा देखा करता है,

जाने अन्जाने में ये दिल बस तेरी ही बातें करता है,

जाने क्यों कुछ सोचकर फिर शरमा जाया करता है ,

आगे बढ़ते हाथ जाने क्यों रूक जाया करते है,

शायद कुछ अनहोनी सोंचकर कुछ भी छूने से डरते है,

एक ख़याल मेरे जेहन में आज भी उठा करता है,

तू ही मेरा वजूद है और ये दिल तुझसे ही डरता रहता है,

जाने क्यों ऐसा होता है,

क्या रात के बिना सवेरा भी कही हुआ करता है........


VEER

1 comment:

Unknown said...

nice yaar maza aa gaya .....waise kiski yaad men likha hai ye mujhe batana zarur.............sach men maza aa gaya teri doosri poem ka intezaar rahe ga.,

regards,
faizan khan