Monday, March 19, 2012

बहाव

बड़ी मुद्द्त बाद कलम उठायी है...लिखता हूँ तो तुम्हारी यादें छलकती हैं....


हर एक पत्ता गिर गया पर मौसम क्यूँ नहीं बदला,
तन्हा बदल भी बरस गया पर अम्बर क्यूँ नहीं बदला......

लहर उठी फिर झुकी चाँद को पुकार कर,
घरौंदा सब बह गया पर सागर क्यूँ नहीं बदला.....


घर उजड़े लोग बिसरे खुशियाँ रोयी  सो अलग,
रस्ते भी वीरान हुए पर शहर क्यूँ नहीं बदला.....

नज़र मिली धड़कन थमी होश बेखबर हुए....
पन्ने सब पलट गए पर किस्सा क्यूँ नहीं बदला....

VEER




3 comments:

Adithya said...

understood evrything except 'gharonda'....4th line first word.....uska meaning kya he?

Prashant said...

sahi hai dost

Nitesh said...

Nice...!!