ओस की बूँदें जब पलकों को छू कर लबों को चूमती हैं,
उन बूंदों को पीना बड़ा अच्छा लगता है;
खामोश नज़रें जब आँखों से मिल कर हौले से झुकती हैं,
उनका यूँ शरमाना बड़ा अच्छा लगता है,
ओस की बूँदें जब पलकों को छू कर लबों को चूमती हैं, .............
तेज चलता वक़्त जब तेरी जुल्फों से टकराकर रुक सा जाता है;
वो वक़्त का यूँ ठहरना बड़ा अच्छा लगता है;
मीठा मीठा शहद जब लफ्ज़ बनकर कानो में घुलता है,
वो लफ़्ज़ों का ये मीठापन बड़ा अच्छा लगता है;
ओस की बूँदें जब पलकों को छू कर लबों को चूमती हैं, .............
उजली सुबह जब अंगडाई लेकर मुस्कुराकर जगने को कहती है;
यूँ इस तरह जगना भी बड़ा अच्छा लगता है,
ढलती शाम जब हाथ थामकर साथ चलती है;
उनका यूँ हाथ थामना बड़ा अच्छा लगता है,
ओस की बूँदें जब पलकों को छू कर लबों को चूमती हैं, .............
VEER
6 comments:
jazab kar diya veer babu aapne... ab to shayari ki shiksha baba ko aapse leni padegi..
thank you dear
good one ...
keep it up.
thank you bhaiya
जीवन में वही समय अच्छा है जब सब कुछ "बड़ा अच्छा लगता है"
yeah sir, agreed..............
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