Sunday, May 29, 2011

छुआ तो जाना आंसू था

इक बूँद जो आयी मेरे लब पे, छुआ तो जाना आंसू था..
थोड़ा नमकीन थोड़ा मीठा सा, स्वाद कुछ जाना पहचाना था ....
भूल गया था मैं इसको, क्यूँ याद यूँ आना बाकी था...
कह्कशो की बंद जुबाँ को, क्यूँ ऐसे ही खुलना था....
इक बूँद जो आयी मेरे लब पे, छुआ तो जाना आंसू था.............

विरह की वेदना को, गर ऐसे ही हँसना था....
तो अजल से बिछड़े इस मन को, तुमसे क्यूँ मिलना ही था...
इस कड़ी धूप में चल के , हमको तो यूँ भी जलना था.....
तो इस आंसू को क्या बात लगी, जो मुझे बचाने आया था...
इक बूँद जो आयी मेरे लब पे, छुआ तो जाना आंसू था.............

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VEER

Sunday, May 22, 2011

It's a song not a poem

इसे गाने के लिए खुद ही सूफियाना धुन भरने के कोशिश करे

नींद कहाँ सब्र कहाँ.....अये रब्बा ....कोई तो बताये मुझको कोई तो बताये...  
नींद न आये..रात भागी जाये.. नींद न आये..रात भागी जाये.. 
ये यादें क्यूँ मुझको ऐसे सताये...अये रब्बा ....कोई तो बताये मुझको कोई तो बताये...  
इन अंखियों की भाषा हम न जाने...कैसे न फिर हम दुनिया की माने.... 
लज्जा फिर ऐसे ही छलकती जाये.....
अये रब्बा ....कोई तो बताये कोई तो बताये... 

ढूंढ रहा मैं मन की बगिया ....खे कर अपने प्रेम की नैय्या ....
न जानू मैं मृग की तृष्णा , रेत है ये या है ये जल की वीणा ...
लबों को अब भी प्यास जलाये...
अये रब्बा ....कोई तो बताये मुझको कोई तो बताये... 
करवट बदले मन ये सोचे...सो भी रहा हूँ या ये भी हैं धोखे....
तारों को गिन कर रात कटी है...अब कुछ भी न क्यूँ मन को भाये...
अये रब्बा ....कोई तो बताये कोई तो बताये... 

जाग गए हैं अंखिया ये बोले....सोये ही कब थे मन ही जाने....
मन की ये ऐसी व्यथा अब किसको बताये....
अये रब्बा किसको बताये हम किसको बताये...
.अये रब्बा ....कोई तो बताये मुझको कोई तो बताये... 



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