इक बूँद जो आयी मेरे लब पे, छुआ तो जाना आंसू था..
थोड़ा नमकीन थोड़ा मीठा सा, स्वाद कुछ जाना पहचाना था ....
भूल गया था मैं इसको, क्यूँ याद यूँ आना बाकी था...
कह्कशो की बंद जुबाँ को, क्यूँ ऐसे ही खुलना था....
इक बूँद जो आयी मेरे लब पे, छुआ तो जाना आंसू था.............
विरह की वेदना को, गर ऐसे ही हँसना था....
तो अजल से बिछड़े इस मन को, तुमसे क्यूँ मिलना ही था...
इस कड़ी धूप में चल के , हमको तो यूँ भी जलना था.....
तो इस आंसू को क्या बात लगी, जो मुझे बचाने आया था...
इक बूँद जो आयी मेरे लब पे, छुआ तो जाना आंसू था.............
Contd ......................
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