Sunday, January 23, 2011

जिंदगी मुझे था तुझ पे भरोसा


जिंदगी मुझे था तुझ पे भरोसा... बता तू खामोश क्यूँ है......
सब गिले शिकवे भुला कर तुझको था अपना बनाया....
दफन करके रूह को..रुसवा हुए सो अलग...
अब मुझे अफ़सोस है , क्यूँ  न समझा  मेरी तक़दीर को ...
गिला तो अब तुझसे ही है .ऐ जिंदगी...बता तू खामोश क्यूँ है...
जिंदगी मुझे था तुझ पे भरोसा......

हँसते हँसते दर्द सहकर मैंने तेरा घर सजाया....
अश्क पाए सोज़ खोयी, रंजिशे पाई बहुत सी....
अब तरस आता है मुझको, देख सूनी शाम को...
क्या दिया तेरी तिशनगी ने तुझको...मिला सूनापन ही ना.....
करम तेरा ही है ऐ जिंदगी बता तू मायूस क्यूँ है..
जिंदगी मुझे था तुझ पे भरोसा......

सांसे थी जब मेरी मद्धम तुमने मुझको आस दी..
जीने के जब बारी आई तुम ना मेरे साथ थी...
कण कण मेरा था तुझमें ही अब मन मेरा आजाद है...
छोड़ कर अपना बसेरा...... पंछी बनकर उड़ चला,....
छूने को आकाश है पर पलके मेरी नम हैं.....
गिला तो अब भी है....ऐ जिंदगी...बता तू खामोश क्यूँ है...
जिंदगी मुझे था तुझ पे भरोसा..........
......

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